भारत में पहली फांसी की सजा किसको मिली

महाराजा नंदकुमार

महाराजा नन्द कुमार

महाराजा नंदकुमार जिन्हे ननकोमर के नाम से भी जाना जाता है, को भारत में पहली फांसी की सजा मिली। पश्चिम बंगाल के विभिन्न क्षेत्रों के लिए एक भारतीय टैक्स कलेक्टर थे। नन्द कुमार का जन्म भद्र पुर में हुआ था, जो अब बीरभूम में है। नन्द कुमार पहले भारतीय थे जिन्हे भारतीय इतिहास में पहली बार फांसी दी गयी थी। नन्द कुमार को ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा बर्दवान, नादिया और हुगली के टैक्स कलेक्टर के रूप में किया गया था। यह पद नन्द कुमार को वॉरेन हेस्टिंग्स के पद से हटाने के बाद मिला था। नन्द कुमार को 5 अगस्त 1775 को कोलकाता में फांसी दी गयी थी।

फांसी की वजह

1773 में नन्द कुमार ने हेस्टिंग्स के खिलाफ रिश्वत लेने या देने का आरोप लगाया जब हेस्टिंग्स को गवर्नर-जनरल के रूप में बहाल किया गया था। महाराजा नन्द कुमार ने हेस्टिंग्स पर 10 लाख रूपए में से एक तिहाई से अधिक की रिश्वत देने का आरोप लगाया और दवा किया की उनके पास एक पत्र के रूप में हेस्टिंग्स के खिलाफ सबूत है। हार्डिंग, जिसने वह पत्र दिया था, ने इस बात से साफ़ इंकार कर दिया वह पत्र उसका था। इस वजह से महाराजा नन्द कुमार पर जालसाज़ी का मुकदमा चलाया गया। इस आरोप पर सर फिलिप फ्रांसिस और बंगाल की सर्वोच्च परिषद् के और दूसरे सदस्यों ने विचार किया, लेकिन हेस्टिंग्स ने परिषद् के आरोपों को ख़ारिज कर दिया। इसके बाद हेस्टिंग्स ने नन्द कुमार के खिलाफ ही दस्तावेज जालसाज़ी का आरोप लगा दिया जिसकी वजह से भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश और हेस्टिंग्स के दोस्त एलिज़ा इम्पे के अधीन इन पर मुकदमा चलाया गया और इन्हे दोषी पाया गया और 5 अगस्त 1775 को इन्हे फांसी दे दी गयी। बाद में हेस्टिंग्स, मुख्य न्यायाधीश सर एलिज़ा इम्पे के साथ, न्यायिक हत्या करने के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा महाभियोग चलाया गया लेकिन नन्द कुमार को दोषी नहीं पाया गया।

कुछ इतिहासकारों की राय है की नंदकुमार की सजा न्याय की हत्या थी। उस वक्त जालसाज़ी की सजा फांसी थी। हालाँकि की कुछ क़ानूनी विद्वानों ने कहा है की यह कानून केवल ब्रिटेन  में लागू था, न की भारत में ब्रिटिश क्षेत्रों में (यह सजा ब्रिटिश संसद द्वारा अधिनियम 1728 द्वारा अनिवार्य था)

महाराजा नन्द कुमार का प्रारंभिक जीवन

महाराजा नन्द कुमार का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। महाराजा नन्द कुमार को बंगाल के नवाब के अधीन पद सम्भालने का मौका मिला। नन्द कुमार को एक एजेंट के रूप में नियुक्त किया गया रॉबर्ट क्लाइव की सिफारिश से बर्दवान, नादिया और हुगली का राजस्व इकठ्ठा करने के लिए। नन्द कुमार ने राधा मोहन ठाकुर से वैष्णव धर्म सीखा।

नन्द कुमार को “महाराजा” की उपाधि 1764 में शाह आलम द्वितीय के द्वारा दी गयी थी।

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