भारत के पहले राष्ट्रपति
भारत के आज़ादी के बाद भारत एक गणतंत्र देश बना 26 जनवरी 1950 को। इसीलिए भारत एक गणतंत्र देश के नाम से भी जाना जाता है। भारत के पहले राष्ट्रपति के लिए जिन्हे चुना गया वो थे डॉ.“राजेंद्र प्रसाद”। डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत के पहले राष्ट्रपति थे। प्रसाद ने भारत में शिक्षा के बढ़ावा के लिए बहुत से काम किये और इसके लिए नेहरू सरकार को भी मदद किया। 1950 में प्रसाद पहली बार राष्ट्रपति बने और दूसरी बार 1957 में, इनका राष्ट्रपति का कार्यकाल 1950 से लेकर 1562 तक रहा। प्रसाद का कार्यकाल 12 सालों तक रहा। प्रसाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल हुए थे। यह पहले राष्ट्रपति हैं जिनका सबसे ज़्यादा कार्यकाल रहा है राष्ट्रपति के पद के रूप में। कार्यकाल पूरा होने के बाद इन्होने कांग्रेस छोड़ दी और आज भी इनके द्वारा बनाया गया दिशानिर्देश सांसदों द्वारा पालन किया जाता है।
राजेंद्र प्रसाद का जन्म
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 03 दिसंबर 1884 को बिहार के जीरादेई में एक चित्रगुप्तवंशी परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री महादेव सहाय श्रीवास्तव और माता का नाम श्रीमती कमलेश्वरी था। इनके पिता संस्कृत और फ़ारसी भाषाओं के विद्वान थे। इनकी माता धर्मनिष्ठ महिला थीं जो अपने बेटों को रामायण और महाभारत की कहानियां सुनती थीं। अपने भाई बहनों में सबसे छोटे थे, इनका एक बड़ा भाई और तीन बड़ी बहनें थीं। इनके बचपन में ही इनकी माता का निधन हो गया था तब इनकी बड़ी बहन ने इनकी देख रेख की।
निधन
अपने जीवन के आखरी समय में यह पटना के निकट सदाकत आश्रम चले गए जहाँ पर 28 फ़रवरी 1963 को इनका निधन हो गया।
कार्य
प्रसाद भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल हुए थे भारतीय राष्ट्रिय आंदोलन के दौरान और बिहार और महाराष्ट्र के क्षेत्र के एक प्रमुख नेता बने। प्रसाद महात्मा गाँधी के समर्थन के लिए 1930 के नमक सत्याग्रह और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुए थे जिसकी वजह से ब्रिटिश अधिकारीयों ने इन्हे बंधक बना लिया। प्रसाद 1947 से लेकर 1948 तक सरकार में खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में कार्य किया। 1947 में स्वतंत्रा के बाद, प्रसाद को भारत की संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में चुना गया, जिसने भारत का संविधान तैयार किया और अनंतिम संसद के रूप में कार्य किया।
छात्र जीवन
प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने के बाद इन्हे छपरा जिला स्कूल भेज दिए गया। स्कूलिंग टाइम में ही जून 1896 में 12 वर्ष की उम्र में ही इनका विवाह राजवंशी देवी से हो गया। इनको दो साल के लिए टी.क़े.घोष अकादेमी पटना में बड़े भाई महेंद्र प्रसाद श्रीवास्तव के साथ भेज दिया गया। इन्होने कलकत्ता विश्व विद्यालय की प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया जिसके लिए इनको प्रति माह 30 रूपए छात्रवृति के रूप में मिलने लगा। प्रसाद 1902 में प्रेसिडेंसी कॉलेज, कलकत्ता में एक विज्ञान के छात्र के रूप में शामिल हुए। इन्होने मार्च 1904 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से एफ.ए.उत्तीर्ण की और मार्च 1905 में प्रथम श्रेणी में स्नातक की डिग्री हासिल की। इनकी बुद्धि से प्रभावित होकर एक परीक्षक ने एक बार उनकी किताब पर कमेंट किया था कि “परीक्षार्थी परीक्षक से बेहतर है”। बाद में इन्होने कला के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित किया और दिसंबर 1907 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी के साथ अर्थशास्त्र में एम. ए. किया।
उपलब्धि
- इलाहबाद विश्वविद्यालय द्वारा इनको डॉ. ऑफ़ लॉ से सम्मानित किया गया।
- 1962 में भारत सरकार ने इनको भारत की सर्वश्रेष्ठ उपाधि भारत रत्न से सम्मानित किया।
सरोजिनी नायडू ने इनके बारे में लिखा था – ” उनकी असाधारण प्रतिभा, उनके स्वभाव का अनोखा माधुर्य, उनके चरित्र की विशालता और अति त्याग के गुण ने शायद उन्हें हमारे सभी नेताओं से अधिक व्यापक और व्यक्तिगत रूप से प्रिय बना दिया है। गाँधी जी के निकटतम शिष्यों में उनका वही स्थान है जो ईसा मसीह के निकट सेंट जॉन का था। “